भोपाल के एक शायर स्वर्गीय फज़ल ताबिश ने जि़ंदगी के फलसफे पर अच्छी बात की है- 'न कर शुमार के हर शय गिनी नहीं जाती, ये जि़ंदगी है, हिसाबों में जी नहीं जाती'. शेर में जि़ंदगी की जगह दोस्ती को फिट कर के देखें तो दोस्ती के मायने समझ में ...
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